आज के दिन की तैयारी मैं पिछले कई महीनो से कर रही थी। इतना खुशनसीब दिन जो है आज।

नए कपडे, बाहर खाना , दिल्ली की इमारतों को घूमना , और ऐसे ही कई प्यारे प्यारे प्लान्स बनाये थे हमने आज के लिए।

रात ख़ुशी के मारे काटे नहीं कट रही थी। मेरी बेटी मुझसे भी ज्यादा खुश थी क्यूंकि उसे बढ़िया खाना और घूमना मिलेगा काफी लम्बे समय के बाद।

आखिर दिन था भी स्पेशल – 11 दिसंबर मेरी शादी की साल गिरह और वो भी 2022 में दसवीं। बहुत खुश किस्मत हूँ एक अच्छा जीवन साथी पाकर और दस साल साथ बिताने की ख़ुशी की कुछ अलग थी। माँ पिता जी ने भी बहुत सारे पैसे पहले ही भेज दिए मेरे बैंक अकाउंट में ताकि मैं अपनी पसंद के तोहफे खरीद सकूँ।

बता दूँ की मैं दिखावे में विश्वास नहीं रखती और ऐसे पल शान्ति से अपने पति के साथ बिताना चाहती हूँ मगर एक बच्चे के जीवन में आ जाने से काफी कुछ बदल जाता है और न चाहते हुए भी हमें काफी कुछ उनकी ख़ुशी के लिए करना पड़ता है।

खैर, अचानक आज सुबह फ़ोन की घंटी बजी। न जाने क्यों जब भी देर रात या पौ फटते ही कोई फ़ोन बजता है तो मेरी धड़कने थम जाती हैं।

और इसी भय को आंखों के सामने सच होते हुए देखना और भी भयानक।

फ़ोन की दूसरी तरफ से आवाज़ आयी – माँ चली गयी।

माँ – मेरी छोटी सास – एक प्यारी सी बच्चों जैसी बूढी औरत। मेरे पति को माँ सामान प्यार देने वाली माँ। मुझे अपनी बहु से ज्यादा बेटी मानने वाली माँ। मेरी बेटी के साथ खेलने वाली एकलौती दादी माँ। मेरी सास के चले जाने के बाद मेरे घर की सबसे बड़ी माँ।

उम्र 90 वर्ष। हमेशा चेहरे पे एक मुस्कान और एक कप चाय पीकर आँचल भर का आशीर्वाद देने वाली माँ।

बहुत दुःख हुआ सुन कर ये खबर आज। सारा जोश और प्लान ज़ाहिर सी बात है सब ख़तम हो गया।

मेरी बेटी भी दुखी हुई मगर उसको फिर भी एक उम्मीद थी की शायद मम्मी पापा बाहर ले जाएँ। मगर थोड़ी देर में उसे भी समझ आ गया की मामला थोड़ा गंभीर है।

फिर भाग दौड़ शुरू हुई की कैसे ओडिशा पहुंचा जाए मगर भगवान को साथ नहीं देना था। आज दिल्ली टी ३ टर्मिनल की खबर मिली और किस्मत ने टिकट भी नहीं मिलने दिया। तो हमने सोचा शायद प्रभु को यही मंज़ूर। इसलिए तेहरवी पे ही जा पाएंगे अब।

फिर जब यादों के साये से निकल कर वर्तमान में आये तो सोचा की जिसको जाना था वो तो चली गयी अब आगे देखा जाये।

मैंने सोचा था आज पूजा करुँगी (साल में गिने चुने दिन ही मैं मंदिर के आगे खड़ी होती हूँ ) और भोग लगाउंगी। वो भी रद्द।

फिर मैंने सोचा क्यों न आज शादी वाली साड़ी ही पेहेन ली जाये और थोड़ा खुद को बेहतर महसूस करवाया जाए। पति ने भी इसमें हामी भर दी।

फिर क्या अलमारी में खोज बीन चालू हुई और मिली मेरी १० साल पुरानी साड़ी। ड्राई क्लीन करवा कर अच्छे से सहेज के रखी थी मैंने।

अभी साड़ी निकाल कर पलंग पे रखी ही थी की सामने वाले घर से चीखने की आवाज़ आयी – “मेरा तन्नू चला गया।”

मैं भाग कर बालकनी में पहुंची तो देखा सामने वाली आंटी बौराई सी चिल्ला रही हैं और लोग उन्हें सँभालने में लगे हैं।

कुछ समझ ही नहीं आया की क्या हुआ।

शहर में रहने का नुक्सान ये है की आपके बगल वाले घर में क्या हो रहा है किसी को पता नहीं होता। सब अपने जीवन की आप धापी में व्यस्त होते हैं।

इन आंटी को भी देखा है मैंने कई बार तुलसी में दिया जलाते हुए या कबूतरों को दाना डालते हुए मगर कौन हैं , उनके घर में कौन रहता है कुछ नहीं पता।

थोड़ी देर में हमारी काम वाली आयी और उसने बताया की सामने वाली आंटी का जवान लड़का आज ख़तम हो गया। शादी शुदा था और एक पत्नी है बस। बच्चे नहीं हैं। आंटी विधवा हैं।

मैं हतप्रभ सी खड़ी रह गयी। क्या दिन है आज। क्यों हो रहा है ये सब।

मैं वापस मुड़ी, साड़ी उठायी और वापस अलमारी में सहेज के रख दी।

भले ही मैं उन आंटी या उनकी बहु को नहीं जानती मगर जहाँ किसी का सुहाग ऊजड़ गया वहां मैं अपनी शादी की साड़ी पेहेन के ख़ुशियाँ मनाऊं ? ऐसा करने की गवाही मेरे दिल ने नहीं दी।

मुझे आज ये एहसास हुआ की हम सिर्फ भविष्य की प्लानिंग ही कर सकते हैं बाकी हैं हम सब बस उसके हाथ की कटपुतली।

मैंने आज फिर एक बार सीखा की – सोचा कभी नहीं होता।

बस दुआ है की प्रभु दोनों आत्माओं को शान्ति प्रदान करे।

छोटी सास की कहानी भी ज़रूर लिखूंगी। काफी कुछ हैं उनके जीवन और मौत से सीखने को।