मनुष्य परमात्म प्राप्ति के लिए स्वतंत्र है, वहम माना हुआ है कि मैं पराधीन हूँ और संसार कि चीजें प्राप्त करने में पराधीन हैं।

क्यूँकि संसार कि चीजें सब जगह नहीं है, सबके लिए नहीं है, सब काल में नहीं है, सबको प्राप्त नहीं है, सब देश में नहीं है, सबके भाग्य में नहीं है, सबके प्रारब्ध में नहीं है। सबके लिए नहीं है।

और परमात्मा अपने है, सब काल, देश, परिस्थिति(सुख, दुःख, हानि, लाभ आदि) में है।

माना ठीक उल्टा है।

जो जहां  है वहि उनको  प्राप्त कर सकता है, चाहिए केवल प्राप्त कर्ने कि इच्छा, लालसा। 

स्वयं परतन्त्र हमने बनायीं है जैसे नशेबाज होता है उससे नशा छूटता नहीं।

चाहना (desire) छोड़ना है। चांहना छोड़ने पर कोई हानि नहीं है, चांहना छोड़ने पर धन नहीं आएगा, सुख नहीं आएगा ऐसी बात नहीं है। बात इससे उलटी है, चांहना छोड़ने पर वस्तु सुगमता से मिलती है। वस्तु स्वत्: प्राप्त् होती है।

और एक बात ऐसी प्राप्त होती है, कि नया प्रारब्ध बन जाता है। धन का मह्त्व ह्दय में  ना हो, दुरूपयोग न करें और संग्रह न करें, लोभ न करें तो स्वत्: आता है धन।

ऐसी बात देखी हुई, सुनी हुई और अनुभव कि हुई है।

Story based on above:- 

ज्यों ज्यो चांहना छोडता है त्यों त्यों वस्तु आती है। ममता कर लेता है उसके पास वस्तु नहीं आती।

एक संतो कि मंडली भिक्षा के लिए गांव में गई, तो भिक्षा कम मिली। 

तो एकांत में विचार किया कि क्या बात है? 

भिक्षा कम कैसे मिली? क्यों नहीं मिली?

तो पूछा कि किसी के पास पैसा है क्या?

तो एक साधु ने कहा “, हाँ मेरे पास पैसा है। “

ये कारण है तब पता चला !

नहीं तो भिक्षा क्यूँ नहीं मिले? कारण क्या है? पास में पैसा था।

सारांश:- चीज़ कि ममता करोगे, संग्रह करोगे, तो बड़ी देर से आएगी। और संग्रह नहीं किया जाए तो देर से नहीं आएगी। वस्तु स्वत: आएगी।

बच्चा जनम लेता है, तो माँ का दूध अपने आप आता है, उसको चिंता नहीं करनी पड़ती अब क्या होगा।

This is based on a discourse given by a saint in my native town. If there are any mistakes those are mine and if there is anything good it is due to saint’s and god’s grace.🙏🙏🙏

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P.S. :- प्रारब्ध पहले रचा, पीछे रचा शरीर।

                 तुलसी चिंता क्यूँ करें, भज ले श्री रघुबीर।।