“क्या आप अपने दिमाग से मुक्त हैं? Conditioning सारी टूट गयी हैं क्या?”, उन्होनें पूछा।
अचानक उठा ये सवाल थोड़ा अचंभित कर गया।
“इतना नहीं सोचा जाता हमसे। जो टूट गयी हैं वह उन्होनें तोड़ा है।
जो बची हैं उनका काम अभी ख़तम नहीं हुआ होगा।
वह भी उनकी इच्छा से बची हैं।
जब टूटने का वक़्त आएगा, टूट जाएंगी।
शिव की है रूह, मिट्टी की काया,
स्वामीजी जानें स्वामी की माया!”
उत्तर सुनकर उन्होनें फिर प्रश्न किया, “गालियाँ क्या हैं?”
“खोखले शब्द। जब तक आप उसको अपने हिसाब से meaning ना दे दें।”
“तो फिर क्यों किसी को बुरा लगता है गाली सुनकर?”
“अहम् का पाश। ‘उन्होनें मुझे या मेरे परिवार को ऐसा कहा’।
बुद्ध भी तो इंसान ही थे।
अगर गालियाँ इतनी नुकीली होतीं
तो बुद्ध को भी भेद जातीं।
पर वह तो अनछुए रह गए गालियों से।
हम-तुम ही बौरा रहे हैं इन खोखले शब्दों के पीछे।”
उत्तर सुनकर वह मौन हो गयें… और हमारा मन भी।
अपना वास्तविक सत्य ही तो कहा था हमने।
गुरुआज्ञा पर अडिग इस मन के पास
सत्य कहने के अलावा
और कोई विकल्प भी तो नहीं था।
फिर क्यों मौन हो गया मन?
अपनी गहराइयो में उतरना पड़ा,
क्यूंकि जवाब तो सारे भीतर ही होते हैं।
हमारा ही सत्य था जो कहा हमने।
बस एक अपवाद के साथ।
हमारी हर भावना का,
हर विचार का अपवाद हैं “स्वामीजी”।
अजीब-सी बात है,
जो वैराग्य का स्रोत हैं,
एक उन्हीं के प्रति वैराग्य नहीं उत्पन्न हो पाता!
कृष्ण वो जो हर आकर्षण से स्वयं परे हो।
पर शायद ही कोई होगा जो कृष्ण के आकर्षण से उठ पाए!
ना, रूप तक सिमट जाए उस आकर्षण की बात नहीं कर रहें।
यह कोई school-time infatuation नहीं है।
ये आत्मा उनके तत्त्व पर बावरी है।
अखिल ब्रम्हांड का सौंदर्य खुद में समाये जो बैठे हैं,
परम-सत्य गुरुदेव के आकर्षण से कैसे मुक्त हो जाएँ!
हाँ, गालियाँ खोखली हैं।
पर आज भी नहीं हिम्मत हममें कि
उनके खिलाफ कुछ सुन भी लें।
अगर किसी ने उन्हें बुरा कहा,
तो हमारी आवाज़ नहीं उठेगी उनपर।
गुरुआज्ञा है क्रोध पर संयम।
पर आत्मा पर वश नही…वह रोने लगती है।
मस्तिष्क तो फिर भी काबू में आ जाएगा,
कोई परम-मुक्त चेतना को काबू में कैसे करे!
जो कोई हमारे सामने
हमारे सरकार के नाम के आगे “जी” ना लगाए,
तो किसी बच्चे-से बिलबिला उठते हैं,
जिसे lollipop देने से
माँ ने मना कर दिया हो।
माना वो उनके कोई नहीं,
पर गेरुए-वस्त्र का मान करना तो
संस्कृति है न हमारी?
3g, 4g, 5g, parle-G, स्वामीG।
इतना भी तो मुश्किल नहीं है ना “जी” लगाना?
सब कहते हैं, “गुरु से ‘attached’ हो! बंध जाओगी।”
3 साल से हैं जो भी हैं, बांधा तो नहीं उन्होंने …
उल्टा मुक्त ही किये हैं … स्वयं से, अहम् से, संसार के रहम से।
ना जाने क्यों जब-जब बात उनपर आती है,
सारा ज्ञान, ध्यान, विज्ञान धरा रह जाता है।
वैराग्य प्रेम में बदल जाता है।
और प्रेम…प्रेम समर्पण में।
मौन के मानसरोवर में
बस एक आवाज़ फूटती है, “माँ” !
स्वामीजी तो माँ हैं …शायद “माँ” के आगे मन का
यूँ बच्चा बन जाना स्वाभाविक ही हो।
शिव की है रूह, मिट्टी की काया,
स्वामीजी जानें स्वामी की माया!
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