(यह एक काल्पनिक लेख है जो मैंने बहुत पहले लिखा था)

सफ़ेद  ऊन

बचपन की एक याद अभी भी जहन में बैठी हुई है … 

मेरी माँ को स्वैटर बुनने का बहुत शौक था |मैं 5 बरस का था, जब उसने मुझे एक के बाद एक सैकड़ों रंग-बिरंगे डिज़ाइन वाले स्वैटर बना के दिए | 

ये मेरी माँ की कला ही थी कि, मुझे उसके बनाए  स्वैटरों से प्यार हो जाता | उसके  हातों से जड़े गए वो खूबसूरत डिज़ाइन, मानो मुझे किसी और जग़ह ले जाकर, किसी और समय की याद दिलाते हों | ऐसा लगता था, कि एक समय था, जब मैं आसमान में चंदा मामा के साथ रहता था, तब मेरे लिए माँ वहाँ स्वैटर बनाकर भेजा करती थी| 

जब मैं माँ को स्वैटर बुनते हुए देखता, तो मेरा भी बुनने का मन होता| मैं ऊन और सुई लेकर उसकी नक़ल करने लगता और सब उलझा देता| एक दिन, मैं माँ से ज़िद करने लगा कि मुझे मेरा ख़ुद का एक ऊन का गोला दो| सुई की बात आई ही नहीं, चूँकि हमेशा से, उसका जिक्र होते ही,  मुझे बड़ी-बड़ी आँखें दिखाई जाती थीं| 

तो माँ ने थोड़ा सोचा और फिर अपनी कुर्सी से उतरी, थोड़ा अलमारियों में झाँका और एक पुराना सफ़ेद ऊन का गोला मुझे थमा दिया| 

माँ रंग-बिरंगे स्वैटर बुनती तो थी, पर उसके बनाये एक भी स्वैटर में, मैंने सफ़ेद रंग के ऊन का इस्तेमाल होते हुए कभी नहीं देखा था| उस पुराने ऊन के गोले को भी मेरी नज़रें पहली ही बार देख रहीं थीं| उसे सफ़ेद रंग से बैरी सी थी|

घर में एक-के-बाद-एक  मौतें हुईं | पहले उसका छोटा भाई , फिर पिता, फिर एक बहन ख़त्म हुई | ये सारी वारदातें, मेरे  पैदा होने के  उपरांत ही हुईं| नानी तो काफ़ी बरस पहले ही खत्म हो गई थी| अब  माँ ने इन लोगों  के दाह-संस्कारों में इतना सफ़ेद पहन लिया था, कि अब उससे और सफेदा न झेला जाता|

उसके लिए सफ़ेद अजीब बेतर्तीब हो  बैठा था; था तो वो सफ़ेद ही पर अपने साथ काली यादें लाता | इसीलिये शायद उसने क़सम खा ली की अब वो कभी न सफ़ेद पहनेगी न इस्तेमाल करेगी| नतीजा ये हुआ की हमारे घर में सफ़ेदी का नामोनिशाँ नहीं था | या ये इत्तेफ़ाक़ भी हो सकता है क्या की न घर की दिवारें, न कुछ और सफ़ेद था| 

उस समय माँ जवान थी| आयु 20 के करीब, जब उसकी शादी कर दी गई| शादी की दुर्दशा हुई| मेरे पिता ने हमें अकेला छोड़ दिया|   

मैं बड़ा होने लगा| माँ की  उम्र भी बढ़ने लगी| कम हुआ तो बस घर का सामान और धीरे-धीरे घर खाली हो गया| पालने वाले सब ऊपर जा चुके थे, बाकि भाग चुके थे| २ साल बाद माँ का तलाक़ भी हो गया| हालाँकि तलाक़ सिर्फ़ औपचारिकता थी, तहस-महस तो हमारा परिवार पहले से ही था… हमेशा से ही|

तलाक़ के कुछ दिनों  बाद माँ ने फाँसी लगाके अपनी जान ले ली| मैं 7 बरस का था| आज मेरे पास उसका कुछ नहीं है| है तो बस कुछ फोटो, और वो सफ़ेद ऊन का गोला जिसने उसकी जान ले ली|