February is month of love . we are born out of love, we search for true love all our lives but not necessary everyone gets it.
This is my attempt to depict what happens when two different people see same emotions from different lenses.
It is not a very happy poem but if you like it or can relate even one percent with it, please let me know in the comment.
Here it goes:
सीने से लगते ही समां जाती थी मैं तुम में
तुम्हे मगर सिर्फ छुअन का एहसास हुआ होगा !
पेशानी पे वो तुम्हारी उँगलियाँ मुझे मेरी तक़दीर बदलती दिखती थी
तुम्हे मगर सिर्फ उलझी लटों का लिहाज़ हुआ होगा !
खत में लिख कर देती थी मैं तुम्हे अपने जज़्बात सारे
तुम्हारे लिए मगर वो सिर्फ अल्फ़ाज़ हुआ होगा !
हर रात बात करते हुए तुम्हारे साथ मैं अपनी ज़िन्दगी के सवेरे बुनती थी
तुम्हे तो सिर्फ मगर गुज़रते हुए वक़्त का अंदाज़ हुआ होगा !
गाती थी मैं सारे गीत तुम्हारे लिए
तुम्हारे लिए तो वो मेरे संगीत का बस रियाज़ हुआ होगा !
मैं अपनी रूह बिछाती थी तुम्हारे सामने
तुम्हे सिर्फ जिस्म का नाज़ हुआ होगा !
मुझे रूहानियत वाला इश्क़ हुआ था तुमसे
तुम्हे महज़ मुझसे प्यार हुआ होगा !
Thanks for reading and sorry if it was not appropriate for anyone.
And if you liked it, then please be ready to tolerate many more in coming days 😉
i am loving all the love and appreciation i am getting from people on this platform. Thanks everyone. you all are special to me. I hope i become like you guys- absolutely compassionate, kind, understanding , devoted and selfless.
Image by 🎄Merry Christmas 🎄 from Pixabay
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