Jai Shri Radhey Shyam!

I offer my obeisance to the divine in you.

हरि क्यूं रूठ गए मुझसे

क्यूं रूठे हो मुझसे प्रियतम
तुम बिन कौन अपनाए मुझे प्रियतम

सब अपनाते है साफ निर्मल आत्म को
सुना है तुम अपनाते हो मुझसो अधम को

हरि, तुम्हें इन हाथों से सेहलाऊं
तुम्हारी रूप माधुरी का आनंद पाऊं

लेकिन ध्यान आए जब तुम्हारा कोमल रूप
तो सोचूं कहीं स्पर्श कर चोट ना पहुंचाऊं

चोट ना पहुंचाऊं तुम्हें कभी अब से
लेकिन दर्शन दो तुम मुझे अब करीब से

प्रियतम तुमने तो पूतना को भी है तारा
मीरा ने तुम्हें पाने को सर्बस है हारा

सूरदास ने बिन आंखों देखा तुमको
स्वामी हरिदास ने गा कर रिझाया तुमको

और क्या कहूं अपनी बात शर्म आ रही
मैंने तो केवल दुखी ही किया तुमको

हरि जानता हूं बिल्कुल लायक नहीं तुम्हारे
लेकिन नाथ अपना लो अब एक तुम्हीं सहारे

 

Jai Shri Radhey Shyam!