Today I am sharing a very personal and weak side of my life.
Whatever I have written here is true and is derived from my personal life. This was a phase when i was insecure, immature and battling depression. Please understand my mind is very fragile and it needs to be handled with care. To all the new fathers or husbands, please know that postpartum depression is very real and can last for years if not taken care with love.
To come out of this dark phase it took me almost 8 months. Only I know how draining those days were for me. I had attempted suicide and also wanted to kill each family member.
Many people think I am very strong, blunt and bold but I had my vulnerable times which turned me into who I am today. Also people think I am a tragedy queen, so let me clarify I have seen tragedies and have come out of them stronger. This is one of the many reasons that I have some good understanding of human relationships and therefore, I started my second innings as a relationship counsellor.
I have learnt change of perspective can save us from many so-called sufferings of this life.
गुज़री है कुछ दिनों में ये ज़िन्दगी, जैसे सिर्फ़ बसर हुई है
ख्वाब वही, साथी वही, मंज़िल वही बस राहें भटक गयी हैं
मुश्किल है बयां करना वो घुटन का एहसास
जैसे बिना ज़ुर्म किये उम्र क़ैद मिली है।
न चाहत काम हुई न मोहब्बत मगर फासले बढ़ गए थे
दिलों के तार जो जन्मों के लिए जुड़े थे, कुछ बिखर से गए थे
न जाने क्या हुआ था जो गलत समझा उन्होंने हमें ,
कश्मकश की इस ज़िन्दगी में हम दो रास्ते पे खड़े थे।
सोचती थी वक़्त है , गुज़र ही जाएगा
मगर एक- एक पल भारी हो रहा था
आंसू भी सूखने लगे थे ये सोच कर की क्या ये माहौल कभी ख़त्म न होगा ?
सोचा ख़त्म कर लूँ ये अपनी ज़िन्दगी तो शायद उन्हें यकीन मिले
पर जानती थी मेरे अलावा कोई है नहीं उनका ,जिससे उन्हें सुकून मिले।
हमसफ़र है वो मेरा जानती हूँ मैं उसे
पर कई मर्तबा लगा एक अनजान अस्तित्व के साथ रह रही हूँ – जिसे मैंने कभी जाना ही नहीं
न वो मुझे देख सकता था , ना सुन सकता था , और समझने की तो जैसे उसने चाहता ही ख़तम कर दी थ।
मेरा गुनाह शायद सिर्फ़ ये था की मैं खुशियां ढूंढती हूँ और उससे लगा उसकी दुनिया से बाहर
बिना ये जाने की मेरी दुनिया उससे परे नहीं है।
उसकी ख़ामोशी चुभती है , घुटन देती है
मगर उसकी नासमझी और ज़िद्द के आगे एक हारे हुए सिपाही सा मह्सूस करती हूँ’
जिसने शिद्दत से दुनिया से हर जंग लड़ी पर उसे इनाम के बदले , उसके अपने राजा ने ही मौत की सज़ा सुना दी हो
बेबसी, अँधेरे सब छट जाएंगे
इसी उम्मीद में फिर उसके दिल पे दस्तक देने की कोशिश करती हूँ
और चाहती हूँ की ये पल दुबारा न आये
मगर सुना है ये ज़िन्दगी है साहेब और ये ऐसे ही चलती है
कुछ खुशियां हैं तो ग़म भी शरीक होंगे
फिर भी उसकी ख़ामोशी और उसकी ज़िद्द मुझे अंदर से खोखला करती है
ना जाने किस दिन सहने की शक्ति ख़तम हो जाये
और मेरी ये ज़िन्दगी गुज़रती – गुज़रती, बस एक दिन गुज़र ही जाये
Thanks for making it till here. i really appreciate your time.
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