अगर मैं आपसे कहूं कि इस वाक्य को पूरा करें

 कुत्ते की दुम……….

 तो शायद अधिकतर हिंदी भाषी यही लिखेंगे

 “कुत्ते की दुम हमेशा टेढ़ी ही रहेगी”

 और अब मैंने कुत्ते की दुम न कह कर इसे यदि कुत्ते की पूँछ कह दिया, तो भाव कुछ बदलता सा लग रहा है ना!

 वाह! शब्दों का कितना सुंदर असर होता है.

” कुत्ते की पूंछ हिलती हुई कितनी प्यारी लगती है “

 आज जब मैं Heaven को अपनी पूँछ हिलाते हुए इधर उधर, एक से दूसरे कमरे में जाते हुए देख रही थी तो बड़ा मजा आ रहा था.

 कभी वह पूंछ थोड़ा हल्की हिलती तो कभी बहुत तेज तेज हिलने लगती . मानो कह रहा हो – Thank you for taking me for a walk…..

यही पूँछ कभी-कभी heaven दबा भी लेता है, और table के नीचे घुस जाता है जब उसे पता चल जाता है कि अब मुझे नहलाया जाएगा…..इसे कहते हैं दुम दबाकर भाग जाना.

                          * * * *

 आज मुझे लगा कि कितना अच्छा होता ना यदि हम इंसानों के भी एक पूंछ लगी होती.😊😊 सीरियसली!!!! सामने वाले को समझ तो आ जाता कि हम खुश हैं या उदास हैं, या फिर डरे हुए हैं.

हालांकि भाषा को निखारने के लिए तो शब्द बहुत ही बढ़िया काम करते हैं. शब्द ही तो भाषा हैं. और भाषा ही शब्द.

किन्तु…..

फिर भी,

जिंदगी में ऐसी बहुत सी परिस्थितियां होती है जब शब्द किसी काम नहीं आते.  अथवा तो याद ही नहीं आते.  या तो बोलने की इच्छा ही नहीं होती.  ऐसे में क्या ही अच्छा होता अगर हम लोगों के भी एक पूँछ लगी होती.   कितना आसान हो जाता यह समझना कि हमारी किस बात से सामने वाला खुश है और कौन सी बात उसे डरा देती है.

और हम भी जहां शब्द काम नहीं करते वहां झट से अपनी दुम दबाकर भागने की कोशिश करते या फिर शब्दों के अभाव में अपनी पूंछ ही हिलाने लगते.😇

 है ना!🥰🥰🥰