फ़ासला है कि मिटता नही, उम्र है कि बढ़ती जा रही है, अभी दूर है मालिक मेरा ,रास्ता है कि बढ़ता जा रहा है, सोचता हूँ ! जीवन थका हारा कहीं सुकूँ से यात्रा भी न देख पाया तो ऊपर किस मुह से मालिक के पास जाऊंगा। मेरे मालिक का आलीशान है महल , रास्ते मे ही अनगिनत बाग हैं , जिनकी ख़ुशबू मादक, आकर्षण से लबरेज़ है, मैं हूँ लालची ,कहीं फंस न जाऊं इन गुलों की मादकता में , महल तो दिख रहा है , क्षितिज से बिल्कुल सटा ऊपर आकाश में अनन्त दूरी तक फैला हुआ,
कल ही कि तो बात है, मैं 25 वर्ष का हो गया हूँ😊 गर्व तो देखिये जैसे ये जीवन के 25 वर्ष में मैने कितनी बार दुनिया को बचाया । बचपन से मार्वल एवेंजर्स की मूवी देख-देख के मैं ख़ुद को किसी सुपर हीरो से कम नही लगाता था। वो अलग बात है कि गली के ग्राम सिंह जब भी मेरे पीछे भागते थे तो, मेरी हालत राजपाल यादव जैसी ही हो जाती थी।
ख़ैर , सुबह-सुबह लंबे ध्यान के बाद छत में टहल रहा था। मेरे आंगन में बारह मासी अमरूद का पेड़ है, आजकल उसमे फूल आने लगे हैं , फूल आते ही नंन्हे मेहमान स्वतः ही फूलो के अर्क की दावत उड़ाने आ जाते हैं ।जिनमे भवरें , मधुमक्खी, गौरैया , और न जाने कितने ही जीव उपस्थित रहतें हैं। मेरी पुरानी कोठरी जहां मैं ध्यान करता हूँ ,के पास ही अमरूद का पेड़ है और ये बाराती सुबह से ही आ जाते हैं। प्रतिदिन का नियम है, ब्रम्ह मुहूर्त में ही मेरे साथ उठते है और भोर होते-होते राग भैरवी गाना शुरू कर देते हैं। मैं समझ जाता हूँ कि अब बैठना मुश्किल है ,चलो बारातियों का स्वागत करते हैं , पान पराग से नही😀 प्रेम पराग से ,फूलो के पराग से । छत में आये पास ही चेयर लगा के बैठ गए, अब ध्यान से सुन रहे हैं इनकी चर्चा,
मैंने कहा कि मुझे भी चर्चा में शामिल किया जाय तो पास ही उड़ती मधुमक्खी ने जिऊँ…जीऊँ कर के मेरी तफ्तीश की , कि ये आउटसाइडर कौन है , सौभाग्य से मुझे एंट्री मिल गयी। चर्चा बहुत खास चल रही थी।
भँवरा अक्सर छोटी मधुमक्खियों पर धौंस जमाता है, और ज्यादा रसीले फूलों पर से उन्हें उड़ा देता है ,ये अपमान मुझसे देखा नही गया मेरे अंदर का शहंशाह जाग गया मुझे अब हर भँवरे में अमरीश पुरी “jk” दिख रहा था😀😀😀 फिर मेरे दिमाग मे तुरंत एक ख्याल आया कि मैं कौन होता हूँ प्रकृति के नियम और व्यवस्था में टांग अड़ाने वाला,
जब श्री हरि हैं जिनकी अध्यक्षता में ये खेल हो रहा है तो मुझे इनका आनंद लेना चाहिए न कि अपने बल अहंकार को इनके ऊपर थोपना चाहिए।
ॐ मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम् । हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते ।
गीता॥ 9.१० ॥
ये चिंतन चल ही रहा था कि ,कोयल ने जोर की कूक मारी ..कुहु… कुहु , आये-हाये मन मस्त मगन हो गया। लेकिन कोयल की कूक में एक वेदना थी , उसकी बोली तो सुरीली थी, लेकिन सारे सुर कोमल गंधर्व के थे ,विरह के थे। मैंने तुरंत प्रार्थना की हे! ईश्वर इसका जोड़ा इसे जल्दी मिल जाये , ऐसा सोच ही रहा था कि तुरंत एक ख्याल आया । स्वामी जी की एक बात तुरंत दिमाग मे आयी ” nature runs in its own course” अहा! आज सुबह – सुबह हरि और हर ने मुझे बड़ा बड़ा पाठ पढ़ाया ।
तो क्या पाठ था वो…….
“यही की चाहे कोयल की कुहू विरह की हो या मिलन की, मधुमक्खी के ऊपर भवरें की दादागीरी हो या गौरैया का चहचहाना, या मेरा बैठ कर इस दृश्य का लुफ़्त उठाना। ये दुनिया एक विराट रंगमंच है जिसमे कभी शोक का मंचन होता है ,तो कभी ख़ुशियों के गीत गाये जाते हैं, कभी पर्दा गिरता है और सब खत्म तो कभी पर्दा उठता है और फिर से कोई नया नाटक खेला जाता है। ये दुनिया एक रंगमंच है बाकी सब प्रपंच है।
स्वामी जी के “attaining of siddhi’s” में फ़ॉर पिलर्स में प्रभू ने बताया था ‘द गेट्स ऑफ इंसिगनिफिकेन्स’ ये कुछ वैसा ही था, मुझे समझ मे आ गया कि परिस्थित चाहे जो उत्पन्न हो आखिर घटित तो सब उनके विश्व विग्रह में ही हो रहा है, तो फिर डरना क्या?, घबराना क्या? ।
इस तरह मेरे 25 होने की पहली सुबह में एक दिव्य ज्ञान उपहार में मिल गया😊
धन्यवाद
घर मे रहें ,सुरक्षित रहें, यथासंभव प्रभू को ध्याते रहें🌼🌼💐
जय श्री हरि🌼🌼💐💐🙏
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