जय श्री हरि परिवार🌺🌺
हम सब अक्सर अहंकार ,क्रोध और अन्य दूसरे विकारों से सामना करते ही हैं ,घर मे ,दफ़्तर में, या किसी और जगह, ये हमारी शांति में बट्टा लगाने आ ही जातें है। गृहस्थी को कितना मुश्किल है अपने आत्मोत्थान के लिए साधनारत हो पाना, मैं ये सोचता था कि, कितना आसान है घर मे रह के सबके बीच , अपने चिंतन-मनन का काम करना ,सच है! सब कुछ किया जा सकता है लेकिन “आत्म चिंतन की साधना ” कभी नहीं की जा सकती। ऐसा कहना थोड़ा निराशावादी होना दर्शाता है, किंतु ये सच है ,सब के बीच केवल हंसी ठिठोली और गप्प- शप्प ही उन्नति पातें है। आज इतना ज्ञान मैं क्यों दे रहा हूँ इसके पीछे कारण है,आज मेरा ये मत ध्वस्त हो गया कि घर मे रह कर कुछ सृजन का काम हो सकता है, घर से मतलब कंफर्ट ज़ोन से है और घर से भी, आज मुझे किसी बात पे क्रोध आ गया ,अमूमन ऐसा होता नहीं पर मेरी लगाम आज छूट गयी मन के जंगली घोड़ों ने मेरी शांति की बगिया को रेस का मैदान बना दिया। मैं अगर गहराई से पड़ताल करने बैठूं तो कोई वाज़िब कारण नही मिलेगा ,अक्सर ही बड़ी बड़ी बातों के कोई वाजिब कारण नहीं हुआ करते, बड़ी समस्याएं अक्सर ही छोटी बातों की पैदाइश होतीं है।
गृहस्थी की सबसे बड़ी चुनौती है कि, वो स्थिर कैसे हो? घर मे रहना और सबके बीच समन्वय स्थापित करके अपनी यात्रा करना बहुत ही दुष्कर होता है, अहंकार की और बेर की जड़ बहुत गहरी होती है,दोनों में एक नुकसानदायी समानता है, जैसे गर्मी में सूखे बेर की झाड़ बारिश होते ही अपने यौवन में आने लगती है, अहंकार भी कुछ-कुछ ऐसे ही है ,जब भी उचित वातावरण मिला धीरे से अपनी कोपलें फैला लेता है, बहुत दिनों तक तो ज्ञात भी नही होता कि ‘स्वाभिमान’ का चोला ओढ़ कर दरसल यह ‘अभिमान’ है जो हमारे मन में घुन की तरह लग जाता है, और किसी दिन विपरीत परिस्थितियों में फट पड़ता है। क्रोध के विस्फोट से हम अपने लोगों को तो दुःखी करते ही हैं, साथ ही क्रोध के विषैले उद्गार से हम अपने आप को सबसे ज्यादा आहत करते हैं।
क्रोध के विस्फ़ोट से लगे घावों को नासूर बनते देर नहीं लगती ,अगर जल्द ही उनपे करुणा का ठंडा लेप न लगाया गया। संयुक्त परिवार में ये चमत्कारी लेप लगाने का काम दादी या नानी या बब्बा लोग करते हैं ,पर कहीं-कहीं तो सारे विस्फ़ोट की जड़ ही ये बुजुर्ग डायनामाइट होते हैं।
बहरहाल, सारे फसाद की जड़ अहंकार है, वो रत्ती भर हो या ज्यादा, हम चाहे जितनी आत्मिक ऊँचाई को छू लें, ये उचित वातावरण देख के अंकुर खिला ही देतेे हैं। बहुत विरले हैं जो अहंकार के बीज को ही नष्ट कर लें। इससे बाहर आने की कोई डगर हो तो बताएं जरूर।
धन्यवाद आपके समय और साहस के लिए मैं इस बात को ले के बहुत सजग रहता हूँ कि मेरे अंतर्द्वंदों और कष्टों की छाया किसी और पर न पड़े ,इसलिए मैं व्यक्तिगत रूप से यहां ऐसी बातें नहीं लिखता ,पर आप सब भले इंसान हैं और अनुभव से भरे हैं इसलिए ज़िक्र करना सुलभ हुआ।
आपके समय के लिए हृदय से आभार🌺🌺👏👏
स्वामी स्वामी🌺🌺❤️❤️⚛️🕉️👏👏
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