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मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) – योगिक दृष्टिकोण
आज मुझे किसी के बारे में ग्यात हुआ जो मानसिक अवसाद (डिप्रेशन) से पीड़ित हैं / मेरी हार्दिक इच्छा थी कि में उनसे व्यक्तिगत रूप से मिलता, और इस दशा से निकल पाने में उनका सहायक होता / क्योंकि मेरी भौगोलिक स्थिति को देखते हुए यह नहीं हो पाएगा, मैं इस लेख के माध्यम से अपना संदेश भेज रहा हूँ / मैं ऐसे बहुत से लोगों से परिचित हूँ जो डिप्रेशन से पीड़ित रह चुके हैं; उनमें से कुछ इतने गंभीर रूप से प्रभावित थे कि उन्होंने अपनी नौकरी भी छोड़ दी व वास्तव में अपने को घर के अंदर क़ैद कर लिया, बिल्कुल निर्जन काल कोठरी की क़ैद के समान / अन्य कुछ के साथ मैंने कई कई घंटे, कई महीनों तक, उन्हें इस स्थिति से बाहर लाने की सहायता रूप में बिताए /
जब कोई डिप्रेशन से प्रभावित होता है तो उसके परिचित व संबंधी भी इसका अनुभव करते हैं/ तथापि परिवार के अन्य जनों को इसे ढाकना पड़ता है. क्योंकि यदि वे भी अपनी निराशाजनक स्थिति को अभिव्यक्त करना आरंभ कर देंगे तो रोगी को और अधिक कष्ट होगा / इस लेख मैं मेरा केंद्रबिन्दु डिप्रेशन की परिभाषा; इसके कारण एवम् उपचार होगा / इस विषय को लेख रूप में पूर्ण करना चुनौतीपूर्ण है, फिर भी मुझे प्रयास तो करना ही चाहिए / एक विस्तृत लेख पढ़ने के लिए तैयार रहें /
अपना दृष्टिकोण आपके सम्मुख प्रस्तुत करने से पूर्व मैं आपका ध्यान कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों की ओर ले जाना चाहता हूँ, जो निम्नलिखित हैं :
कृपया स्मरण रखें कि मैं चिकित्सा – शास्त्र नहीं बल्कि ध्यान का विशेषज्ञ हूँ / मेरा दृष्टिकोण मेरी वर्षों की योगिक क्रियाओं, ध्यान एवं कई महीनों की अत्यंत गहन साधना पर आधारित है / इस ध्यान – साधना का केवल एक ही प्रयोजन था – मन के वास्तविक स्वरूप का अनुभव करना; वह स्वाभाविक स्थिति पाना जो मन रूपी गुत्थी (ग्रंथि) को सुलझा देती है; मस्तिष्क नहीं, शरीर नहीं, केवल मन /
इस लेख में दी गई जानकारी प्रमुखतः व प्रत्यक्षतः उस ज्ञान पर आधारित है जो मेरे गहन ध्यान की साम्यावस्था के क्षणों में प्रस्फुटित होता है/ अपनी बात को और स्पष्ट करने हेतु मैंने वेदों द्वारा प्रतिपादित ज्ञान का सहारा लिया है; इसीलिए संस्कृत शब्दावली का प्रयोग किया है / इसके साथ साथ मेरे वह अनुभव भी आधार बने हैं जो उन सब व्यक्तियों, जो अपने व्यक्तिगत् जीवन के दौरान डिप्रेशन से गुज़रे हैं, की सहायता के समय मैंने अर्जित किए / यदि आप संसार को मेरी दृष्टि से देख पायें, तो दृशय उसी क्षण रूपांतरित हो जाएगा/ और मेरा दृष्टिकोण पाने के लिए आपको भी वही करना होगा जो मैं करता हूँ; अन्य सब तो घुटनों के बल पीछे पीछे चला आएगा / कृपया इस लेख के संदेश को समझने हेतु इसे कई बार पढ़ें /
डिप्रेशन क्या है ?
डिप्रेशन मन की एक अवस्था है / यह एक शारीरिक व्याधि नहीं है; यह एक स्नायु विज्ञान {नुरलॉजिकल} की अव्यवस्था नहीं है और यह बहुत विरले ही मस्तिष्क का ठीक कार्य न करना होता है/ यह निश्चित रूप से मन की एक स्थिति ही है / और मन, संपूर्ण शरीर व उससे परे तक व्याप्त है / यही कारण है कि मन की संतुष्टि संपूर्ण शरीर को उसी प्रकार शांत कर देती है जैसे इसकी बेचैनी पूरे तंत्र को अस्त व्यस्त कर देती है / रोगी के लक्षणों द्वारा डिप्रेशन की गंभीरता का पता लगाया जा सकता है / हालाँकि मैं रोगी शब्द का प्रयोग कर रहा हूँ, वास्तव में यह एक विरोधाभास है / डिप्रेशन का कोई रोगी हो नहीं सकता क्योंकि यह एक रोग नहीं है जिससे कोई प्रभावित हो सकता हो / यह परस्पर टकराती वासनाओं का बेमेल होना मात्र है जिसे मन की प्रवृतियाँ कह कर भी जाना जाता है / मन ग़लत विधि से कार्य नहीं कर सकता चूँकि मन की वास्तविक अवस्था निर्मल आनंद है जो सभी प्रकार के व्यक्तिनिष्ठ चित्रांकन व द्वन्दओं से परे है / अच्छा-बुरा, सही-ग़लत, सच-झूठ इत्यादि ऐसे मनोनयन व द्वन्दओं के उदाहरण हैं /
डिप्रेशन की गंभीरता को सही रूप से जाँचने के लिए कृपया निम्नलिखित भाग ध्यान से व धैर्यपूर्वक पढ़ें / मैं सरल बनाने का प्रयास करूँगा, किंतु हम एक जटिल विषय से जूझ रहे हैं / अतः इसके आशय को पूर्णतः आत्मसात करने हेतु जितना आवश्यक लगे उतनी बार इसे पढ़ें /
आपके पास तीन शरीर हैं – स्थूल शरीर, सूक्ष्म शरीर व कारण शरीर / आपका स्थूल शरीर आपका वह दिखने वाला शरीर है जो हांड-माँस , अस्थि आदि का बना है / आपका सूक्ष्म शरीर आपकी चेतन अवस्था है व भावनाओं का सम्मिश्रण है/ आपका कारण शरीर आपकी जीवात्मा (स्व) का रूप है / कारण शरीर पर स्थूल व सूक्ष्म दोनों शरीर निर्भर करते हैं / यह तीनों शरीर पाँच कोषों के साथ मिल कर कार्य करते हैं – अन्न्मय कोष, मनोमय कोष, प्राणमय कोष, विज्ञानमय कोष एवं आनंदमय कोष / ये सब समग्र रूप से शरीर में उपस्थित पाँच मूलभूत उर्जातत्वों (वायु) को प्रभावित करते हैं – प्राणवायु, अपानवायु, उद्दानवायु, समानवायु, व व्यानवायु /
ऊर्जाओं (वायु) का परिचालन कोषों की स्थिति व तीनों शरीरों को प्रभावित कर सकता है तथा तीनों शरीर विभिन्न वायु व कोषों को / आपके शरीर में जो भी होता है वह पूर्णतः उपरोक्त बातों से सीधा संबंधित है / इस लेख में मैं विभिन्न ऊर्जाओं व कोषों की व्याख्या नहीं करूँगा , वरना ऐसा न हो कि यह एक पुस्तक बन जाए / तथापि मैं तीन शरीर व उनका सभी शारीरिक व मानसिक अवस्थाओं से क्या सम्बन्ध है जिसके उपचार के लिए ओषधि की आवश्यकता होती है, इसका संक्षिप्त में वर्णन करूँगा /
स्थूल शरीर (भौतिक शरीर)
आयुर्वेद व अन्य कई योगिक ग्रंथों के अनुसार आपका भौतिक शरीर सात मूल तत्वों से निर्मित हुआ है, ये हैं – रस, रक्त, माँस, मेदा, अस्थि, मज्जा व शुक्र / वात, पित्त्त, और कफ – इन तीनों द्रव्यों की संरचना यह सुनिश्चित करती है कि आपका शरीर ग्रहण किए गये भोजन का क्या करता है, वह भोजन जिसमें साँस द्वारा ली गयी हवा से लेकर वे सब वासयुक्त मीठे व्यंजन शामिल हैं जो आप मज़े लेकर खाते हैं / पाँच ऊर्जा (वायु) पाचन व चयापचन जैसे घटकों को प्रभावित करती हैं / यह विशुद्ध रूप से स्थूल शरीर के दृष्टिकोण से है / एक बार जब स्थूल शरीर भोजन को संसाधित कर लेता है तब सूक्ष्म शरीर (चेतना) अपनी अवस्था अनुसार निर्धारित करती है कि कितना भोजन आपके भौतिक शरीर को प्रभावित करे / यही कारण है कि कुछ व्यक्ति बहुत कम मात्रा में खाते हैं परंतु अधिक मोटापा (वसा) एकत्रित कर लेते हैं व कुछ अन्य खाते तो अधिक हैं परंतु उनका वजन नहीं बढ़ता /
सूक्ष्म शरीर (चेतना)
सरल शब्दों में कहें तो आपकी चेतन अवस्था का ही दूसरा नाम सूक्ष्म शरीर है / किसी भी एक समय में आपकी चेतना इन पाँचों में से किसी भी एक अवस्था में हो सकती है – चैतन्य, उपचैतन्य, अनाचैतन्य, अचैतन्य और पराचैतन्य / इसके साथ साथ आप स्वप्न, जागृत, सुषुप्त अथवा तुरिय – किसी भी अवस्था में हो सकते हैं / एक बार फिर, लेख को संक्षिप्त रखने कि दृष्टि से, मैं इस शब्दावली की व्याख्या फिर कभी करूँगा / अभी के लिया मैं चाहता हूँ कि आप इन शब्दों से परिचित हों ताकि आप एक व्यापक दृष्टिकोण रख पाएँ / यही वह स्थान है जहाँ आपकी सभी भावनाएँ रहती हैं, वह है सूक्ष्म शरीर / शरीर की सभी स्वाभाविक क्रियाए जैसे ह्रदय की धड़कन, नाड़ी-चालन, रक्तचाप आदि पर सूक्ष्म शरीर का प्रभाव होता है / सूक्ष्म शरीर पर नियंत्रण आपको शरीर की सभी स्वाभाविक क्रियाओं पर नियंत्रण करवा सकता है / मैं यह तथ्य अपने स्वयं के अनुभव से कह रहा हूँ जिसे मैं प्रयोगशाला की व्यवस्था के अंतर्गत प्रमाणित कर सकता हूँ /
कारण शरीर (जीवात्मा)
आपकी जीवात्मा पर ही आपके भौतिक अस्तित्व व चेतन अवस्था का सीधा उत्तरदायित्व है / बहुत से योगिक ग्रंथ प्रतिपादित करते हैं कि मृत्योपरांत जीवात्मा एक शरीर से दूसरे शरीर की ओर प्रस्थान करती है, बिल्कुल उसी तरह जिस प्रकार हम मैले वस्त्र त्याग कर नये धारण करते हैं / लेकिन बात यहीं समाप्त नहीं होती; जीवात्मा अकेले ही यात्रा नहीं करती है/ चित्तवृत्तियाँ भी इसके साथ ही जाती हैं / वह चित्तवृत्तियाँ जो शब्द, स्पर्श, रस, रूप, व गंध का आस्वादन कान, त्वचा, जिहवा, नेत्र व नासिका के माध्यम से – बाह्य जगत का अनुभव करते समय बलशाली हो चुकी हैं / एक तरह से कारण शरीर आपका असली स्वभाव है / यह आपकी निर्मल आत्मा है, आपके मन की विद्युत का प्रतिरोधक होता है, ठीक उसी प्रकार प्रतिबंधित-आत्मा आनंद की प्रतिरोधक है / मन की सभी वृत्तियाँ आपके कारण शरीर में विद्यमान रहती हैं /
रोग का जीवन चक्र
सामान्यत: सभी शारीरिक रोग लक्षण मात्र होते हैं, न कि कारण / वे उस प्रतिबंधित चेतना के लक्षण हैं जो अब प्रदूषित है / जब सूक्ष्म शरीर तनाव में होगा तब रोग के चिन्ह भौतिक शरीर पर प्रकट होंगे / पर उपचार व चिकित्सा द्वारा भौतिक शरीर के कुछ रोगों का नियंत्रण संभव है , किंतु संपूर्ण आरोग्यता तभी आती है जब सूक्ष्म शरीर से मूल कारण जड़ से समाप्त कर दिया जाता है / एक ऐसे कैंसर के रोगी के बारे में सोचें जिसके पेट के ट्यूमर का ऑपरेशन हुआ हो / उसका ट्यूमर चाहे किसी भी प्रकार का हो, यदि वह अपनी जीवनशैली में परिवर्तन नहीं लाता, जो उसके भौतिक शरीर पर सीधा प्रभाव डालती है, और जीवन के प्रति अपने दृष्टिकोण को नहीं बदलता – जो उसके सूक्ष्म शरीर पर सीधा प्रभाव डालता है, तो उसके ट्यूमर के फिर से उत्पन्न होने की संभावना बन जाती है / यदि वह अपने कारण शरीर से संबंध स्थापित कर पता है – ध्यान के द्वारा या फिर गहन समर्पण के महाभाव द्वारा – तो वह रोग को अपने तंत्र में से बाहर निकाल फेंक सकता है, वह भी हमेशा के लिए /
कुछ रोग भौतिक शरीर में उत्पन्न होते हैं व सूक्ष्म शरीर (अंतःकरण) से गुज़रते हुए कारण शरीर (आत्मा) को प्रभावित करते हैं / ऐसे रोग व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक एवम् आध्यात्मिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं / इनको ठीक करना कुछ आसान व जल्दी होता है, उनके मुकाबले जिनकी वजह होता है एक रुग्ण कारण शरीर / ऐसे रोग जो विकृत मानसिकता के कारण सीधे सूक्ष्म शरीर में होते हैं, वे भौतिक शरीर की स्थाई व्याधियाँ बन जाते हैं / एक भावनात्मक असंतुलन व उससे पनपा रुग्ण सूक्ष्म शरीर – यही सभी चिरकालिक रोगों का मूल कारण होता है / कारण शरीर से उत्पन्न रोगों का निवारण सबसे अधिक समय लेता है, और प्रायः ये भौतिक शरीर को उसकी अंतिम अवस्था तक पहुँचा देते हैं /
आपकी प्रतिबंधित आत्मा की अवस्था का आपके अंतःकरण (चेतना) पर सीधा प्रभाव पड़ता है जो परिणामस्वरूप आपके भौतिक शरीर पर असर करता है / जो व्यक्ति एक तनवरहित जीवन जीते हैं वे अक्सर स्वस्थ शरीर के साथ लंबी अवधि तक जीने का आनंद लेते हैं / भौतिक शरीर की क्रियाएँ अंतःकरण एवं आत्मा की अवस्था से प्रभावित होती हैं / उदाहरणस्वरूप , जो रोगी दवाओं की बेहोशी के प्रभाव में होता है वह हिल भी नहीं सकता क्योंकि उसका अंतःकरण (सूक्ष्म शरीर) बेहोशी के प्रभाव में है/ और अन्य कोई जिसे मृत घोषित कर दिया गया है, यानि वह आत्मरहित है, वह कभी भी अपनी चेतन अवस्था में लौट नहीं पता, कभी भी शरीर को हिला नहीं पाता /
डिप्रेशन के कारण
एक प्रासंगिक प्रश्न – डिप्रेशन किस कारण से होता है? डिप्रेशन मन की एक स्थिति है / यह कारण शरीर में उत्पन्न होता है / मन अपनी ही अव्यक्त मनोवृतियों का शिकार बन गया है / यह अपनी इच्छाओं को दबाने या एक अतृप्त जीवन के कारण हो सकता है, यह दोनों ही अंतःकरण में व्याप्त अज्ञानवश होते हैं / बहुत से लोग एक अतृप्त जीवन जीते हैं; कुछ अपनी आत्मा की आवाज़ को अनसुना करना बेहतर समझते हैं जबकि अन्य कई इसे सांसारिक क्रिया-कलापों में डुबो देते हैं / परन्तु एक दिन यह बाहर आ ही जाती है /
रुग्ण कारण शरीर के लिए कोई बाह्य औषधि नहीं हो सकती / डिप्रेशन का उपचार जानने से पूर्व यह महत्वपूर्ण है कि डिप्रेशन के प्रकार जान लिए जाएँ /
यदि डिप्रेशन के कारण आपका शरीर अस्वस्थ है व आपको उच्च रक्तचाप, भूख न लगना अथवा अनियमित रूप से भूख लगना आदि इसी प्रकार की अन्य समस्याएं उत्पन्न हो चुकी हैं तो आपका डिप्रेशन आपके भौतिक शरीर तक पहुँच चुका है / हो सकता है आप कब्ज से भी पीड़ित हों / आपके डिप्रेशन को ‘गंभीर’ तभी कहा जाएगा यदि उपरोक्त शारीरिक लक्षणों के साथ आपमें ‘हल्का डिप्रेशन’ व ‘अवास्तविक डिप्रेशन’ के भी सभी चिन्ह उपस्थित हों /
आप इस स्थिति में तनावपूर्ण जीवनशैली व भावनात्मक उठापटक के कारण हैं, व आपकी आत्मा एक लंबी भुखमरी से गुज़री है; बस जैसे तैसे अपने को इस आध्यात्मिक अकाल में जिंदा रखे हुए / इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि आपका डिप्रेशन ठीक नहीं हो सकता / यह केवल इस बात का संकेत है कि आपको सभी तीनों स्तरों पर कार्य करना होगा / नीचे ‘उपचार’ खंड के अंतर्गत मैं इसे कुछ विस्तार से वर्णित करूँगा /
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