I’m sharing a Ghazal written by me, it’s not my story but just a thought came and I framed that in the form of a Ghazal. I hope you will enjoy it.

मैं ज़िंदगी में भटक रहा था

मैं ज़िंदगी में भटक रहा था
बात बात में अटक रहा था
मुसीबतों में ना शांत रहता
पत्थर दिलों पे सर पटक रहा था

राह दिखाता कोई नहीं है
मुझे समझता कोई नहीं है
जिस्म से करते हैं सब मोहब्बत
रूह को भाता कोई नहीं है

मुसीबतों में कोई ना आता
जिसे भी देखो है सलाह देता
दवा देने आया आज है वो
जो सलामती की कभी दुआ न देता

तुम जो मिले हो हम खिल उठे हैं
गुलों पे भवरें भी आ बैठे हैं
बहार का मौसम आ गया है
मेरे खुदा हम भी जी उठे हैं

मैं ज़िंदगी में भटक रहा था
बात बात में अटक रहा था
जब कुछ न था पास मेरे
अपनों की नजरों में खटक रहा था

Thank you for reading. 

Jai Sri Hari 🌼

Pic credits: saatchiart.com