My Mystical Lord!
यह अनुभव है 10/10/2011 का, जब स्वामी जी साधना से लौटे थे और आश्रम में रहने जा रहे थे और वहां पर कीर्तन और हवन का आयोजन भी था। मेरे भाई-भाभी और मैं आश्रम जा रहे थे। रात को भाई का फोन आया कि वह किसी काम में फँस गया है और वो चंडीगढ़ नहीं आ पायेगा तो बड़ी मुश्किल से हमे एक driver मिल पाया। हम दोनो सुबह-२ आश्रम के लिये निकल पड़ी।
मेरे मन में बहुत तरीके के विचार चल रहे थे कि कुछ सालों के बाद स्वामी जी को देख रहे है, माहौल कैसा होगा, अब स्वामी जी से शायद कभी भी खुल कर बात नहीं हो पायेगी, क्या नियम होंगे……कुछ भी पता नहीं चल रहा था….आश्रम जाते हुये रास्ते में हमारे परिजन भी हमें मिल गये तो रास्ता काफ़ी आसान हो गया।
जैसे ही आश्रम पहुँची तो स्वामी जी एक कुर्सी पर विराजमान थे, मुस्कुरा रहे थे और ध्वजा पुजा की तैयारी चल रही थी। जैसे ही मैं पहुँची तो स्वामी जी बोले ” बहुत अच्छा किया आप लोग आ गये, जैसे तैसे करके पहुंच गये। बहुत अच्छा किया …..” तो मैंने हस पर कहा,” स्वामी जी, यह तो आपने बुला लिया अगर हम खुद से आते तो कभी नहीं आ पाते।”
ध्वजा पुजा हुई। बनारस से काफ़ी स्वामी जी के भक्तजन आये हुये थे और उन में से बहुत से लोग बहुत बढ़िया गायक भी थे। संकीर्तन शुरु हुआ……ना जाने कैसे मेरी अश्रुधारा शुरु हो गयी। अभी तो मैंने हमारे स्वामी जी के जी भर कर दर्शन भी नहीं किये थे। आज तक मैंने खुद को मन से बहुत मजबूत माना है परन्तु उस दिन लग कहा था कि केवल स्वामी जी से ही सारी प्रार्थना करुं और क्षमा मांगु। यह संकीर्तन 2-3 घंटे चला और तब तक मैं दिव्य आनंद में डुबी रही।
अब आश्रम में उस समय केवल एक छोटी सी 3 कमरों की कुटिया ही बनी थी और रहने वाले करीब 50 लोग। स्त्रीयां कुटिया में सोई और स्वामी जी और लगभग सारे पुरुष बाहर खुले तंबु में सोये। आश्रम में रात को काफी
ठंड हो जाती है। मुझे पहली बार अहसास हुआ कि स्वामी जी को हम शायद जानते ही नहीं, मैंने उनका यह स्वरुप पहली बार देखा था।
11/10/2011 प्रात: हवन हुआ, फिर संकीर्तन हुआ और फिर स्वामी जी के दिव्य प्रवचनो को हम सब ने सुना…..दिल कर रहा था कि समय थम जाये, और क्या चाहिये, सब कुछ तो प्रकृति ने झोली में डाल दिया है।
अगले दिन 12/10/2011 को मुझे भी सबके साथ जाना था। उस दिन मैं बहुत उदास थी क्यों कि एक तो स्वामी जी को छोड कर जा रही थी और दुसरे अब स्वामी जी के दर्शन कब होंगे कुछ भी तो नहीं पता था। दिल कर रहा था कि बच्चों जैसे रो दूं…..परन्तु स्वामी जी का आशीर्वाद है कि भाव का अभाव होते हुये भी सभी पर अपनी कृपा बरसाते है और मैं स्वामी जी के दर्शन करने के लिये बार-२ आश्रम गयी।
अब तक का यही अनुभव रहा है कि जितना समय स्वामी जी के पास होते है, हम, हम ना होकर दिव्य हो जाते है।
श्री स्वामी जी की जय!!!
Note: The author posted anonymously.
This post was originally published on Swamiji’s fan club website which no longer exists, to know more about that, refer to my intro part of the archives series here.
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