पार लगाते रहना…
ना तुम स्वामी हो, ना तुम हो जी
जो भी हो तुम हो, हमारे हो जी
जन्मदिन तो सिर्फ़ मिलने का बहाना है
हमें तो तुम्हारे क़रीब और क़रीब आना है
अपनी हस्ती को मिटा कर तुम में मिल जाना है
बूँद को हर हाल में समुद्र में मिल जाना है
कुछ भी हो अब यह दूरी सहन नहीं होती है
मिटा दो हस्ती मेरी, शायद प्यार की यही रीत होती है
मुझ जैसे और भी है तुम पर मर मिटने वाले
मिटते मिटते तुम ही में मिल जाऊँ, बस तू ही मुझे संभाले
और का भी तुम पर पुरा पुरा हक़ है
एक जगह मेरी भी रखना बस इतनी मिन्नत है
भगवान भी मुझ को माफ़ ना करता जितना तूने किया है
इसलिये तेरा नाम है पहले, तू ही मेरी जन्नत है तू ही मेरी जन्नत है
कमज़ोर बहुत हुँ, बूझ ना जाऊँ इतना सहारा देते रहना
जब जब डूबु भव सागर में, पार लगाते रहना पार लगाते रहना……..
जन्मदिवस पर
महिंदर ओम्
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