बहते भावों में बहते बहते…

स्वामी के दरबार में सब लोगों का खाता…
जैसी कोई भावना रखता, वैसा ही फल पाता…

सच में यही सत्य है कि हमारे स्वामीजी के पास हम में से हर एक के लिए, हमारी निजी भावनाओं के ही अनुरूप फल देने का टेलर मेड फार्मूला विद्यमान है । यह मैं केवल एक या दो बार के नहीं, बल्कि हर बार के अनुभव से कह रही हूँ । हमारे द्वारा मुख से कुछ बोले बिना ही, हमारे हर भाव को स्वामीजी स्वयं से सुनते हैं, ग्रहण करते हैं और फिर, उसी के अनुरूप , शत प्रतिशत फिट युक्ति, साधन, स्थिति अथवा फल हम तक पहुंचा देते हैं । यह केवल मेरे ही नहीं, आश्रम में मिले हर एक श्रद्धालु का अनुभव है, जिसे मैंने इस बार स्वामीजी के जन्मदिन के उत्सव में शामिल होकर स्वयं देखा व समझा ।

यह मेरे आश्रम आने का दूसरा अवसर था । गत वर्ष, जुलाई – अगस्त 2014 में पहली बार स्वामीजी के दर्शन यू ट्यूब के माध्यम से प्राप्त हुए, और, इसके साथ ही पूर्ण गुरु कि खोज भी सम्पूर्ण हुई । ऐसा कुछ भी बाकी नहीं रहा जिसका उत्तर स्वामीजी के प्रवचनों व लेखों में न मिला हो । आज तक के जीवन में जहां जहां, जिस जिस व्यक्ति, स्थान अथवा पुस्तक से जो कुछ भी सुना व पढ़ा था, वह सब एक साथ, एक ही में पा लिया ।

ध्यान हो या भक्ति, योग हो या ज्ञान – सब का अथाह भंडार हैं हमारे स्वामी जी । आपकी प्यास चाहे जिस मार्ग कि हो, यहाँ आ कर आपको सम्पूर्ण तृप्ति होनी ही है, इस बात में लेशमात्र भी संदेह नहीं है । आश्रम में उपस्थित हर श्रद्धालु के मुख पर विराजित वह असीमित मुस्कान इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण थी । हम सब स्वामीजी की बगिया के पुष्प हैं, हर पुष्प का अपना भिन्न रंग व भिन्न सुगंध । कोई स्वामी जी में श्री हरि को निहार रहा था तो कोई उनके परम सिद्ध, परम योगी, परम ध्यानी स्वरूप का आस्वादन ले रहा था ।

मेरी स्वाभाविक रुचि भक्ति मार्ग में है । ज्ञान व वैराग्य रूपी पुत्रों ने तो भक्ति माँ के पथ पर मिलना ही था । स्वामीजी के श्री चरणों में जितनी मात्रा में समर्पण भाव बढ़ रहा है, उसी के अनुरूप फल की प्राप्ति भी हो रही है । पहली बार मैं 3 अप्रैल 2015 को केवल एक दिन के लिए आश्रम गई । घर आ कर एक ही इच्छा व तड़प प्रबल थी कि किसी तरह स्वामीजी के आध्यात्मिक व सामाजिक उत्थान के भव्य यज्ञ में इस तुच्छ की भी कहीं कोई छोटी सी आहुति स्वीकार हो जाये । गृहस्थ की जिम्मेदारियों को संभालते हुए, कहीं कोई ऐसा मार्ग निकाल आए।

ई-मेल भेज कर अपनी इच्छा व्यक्त कर दी । और लो… मार्ग खुल गया… । मुझे इंग्लिश ब्लॉग को हिन्दी में अनुवादित करने की सेवा में छोटी सी भागीदारी प्राप्त हो गई । मेरे लिए यह एक लाइफ-लाइन से कम न था । वास्तव में मुझे ऐसी ही सेवा की हृदय से अपेक्षा थी जहां गृहस्थ का संतुलन भी न बिगड़े और मेरी इच्छा भी पूरी हो पाये । जो आनंद, जो संतुष्टि, व जो ध्यान का सुख मुझे इस कार्य को करते हुए अनुभव होता है, वह अवर्णनीय है ।

यही नहीं, स्वामीजी स्वयं ही, हर स्थिति में, हर किसी की इच्छा, योग्यता, तड़प के अनुसार सब कुछ सेट कर देते हैं । हमारी आध्यात्मिक यात्रा में, किसे, कहाँ, कैसे, कितना व क्या कृपा रूप में प्रदान करना है व कैसे यात्रा को आगे बढ़ाना है – हर प्रकार का पूरा पूरा ध्यान वे स्वयं रख रहे हैं । इस बार आश्रम में 28 नवम्बर से 1 दिसम्बर तक बिताए 4 दिनों में मैंने हर श्रद्धालु के मुख से सुने उनके अनुभवों व भावों से ही यह सब जाना और समझा, व हृदय की गहराइयों तक स्वयं अनुभव भी किया । बस हमारा अन्तःकरण शुद्ध व समर्पण भाव दृढ़ होता जाये, स्वामीजी की ओर से तो कोई देर है ही नहीं । वे तो मानो अपने हर श्रद्धालु की प्रतीक्षा ही कर रहे हों कि आओ और अपने अपने हिस्से का प्रेम जल्द से जल्द मुझसे ले लो … अंत में यही कहना है :

अब तो गुरु संग है….. ज़िदगी अपनी ।

वचनों पे मिटना है………….. बंदगी अपनी… हरि ॐ ।

Anu


This post was originally published on Swamiji’s fan club website which no longer exists, to know more about that, refer to my intro part of the archives series here.

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