Jai Sri Hari!
Sometimes we need a check for ourselves. Some parameter to evaluate our path but Oh Lord I’m walking on a wrong path completely, let me express my bhav Hari by verse of Soordas Ji. Oh Dear Soordas Ji, please bless me with some bhakti, just a drop of that devotional nectar.
अब मैं नाच्यौ बहुत गुपाल।
काम-क्रोध कौ पहिरि चोलना, कंठ बिषय की माल॥
महामोह के नूपुर बाजत, चलत असंगत चाल।
भ्रम-भोयौ मन भयौ, पखावज, चलत असंगत चाल॥
तृष्ना नाद करति घट भीतर, नाना बिधि दै ताल।
माया कौ कटि फेंटा बाँध्यौ, लोभ-तिलक दियौ भाल॥
कोटिक कला काछि दिखाराई जल-थल सुधि नहिं काल।
सूरदास की सबै अविद्या दूरि करौ नँदलाल।।
Translation
हे गोपाल! अब मैं बहुत नाच चुका।
काम और क्रोध का जामा पहनकर, विषयों की माला गले में डालकर, महामोह-ग्रस्त होने से निंदा करने में ही मुझे सुख मिलता है। नाचता रहा।
भ्रम से भ्रमित मन ही पखावज (मृदंग) बना।
कुसंगरूपी चाल मैं चलता हूँ। अनेक प्रकार के ताल देती हुई तृष्णा हृदय के भीतर नाद कर रही है।
कमर में माया का फेटा बाँध रखा है ओर ललाट पर लोभ का तिलक लगा लिया है।
जल-थल में स्वांग धारण कर कितने समय से (यह तो मुझे स्मरण नहीं) करोड़ों कलाएँ मैंने भली प्रकार दिखलाई हैं।
हे नंदलाल! अब तो सूरदास का सारा अज्ञान दूर कर दो।
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Pic Credits: https://pin.it/4QtE60R
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