।।श्री हितं वन्दे।।
।।श्री राधावल्लभो विजयते।।
।।नमो नमो गुरु कृपा निधान।।
आप सभी वैष्णव भक्त वृंद को दंडवत प्रणाम।
श्री गुरु चरण कमलों को स्मरण कर आज पहला वचन हम जीवन में उतारेंगे।
- “यह मनुष्य जन्म सिर्फ भगवतप्राप्ति के लिए मिला है क्योंकि केवल इसी शरीर से हम भगवतप्राप्ति कर सकते हैं।”
इसमें केवल भगवतप्राप्ति के लिए मनुष्य देह की दुर्लभता बताई है, चाहे व्यक्ति कोई से भी आश्रम (गृहस्थ या विरक्त आश्रम) से हो वो महत्वपूर्ण नहीं। महत्व है तो आंतरिक चिंतन और स्मृति का अब ये श्री हरि की इच्छा है आपको किस मार्ग की ओर ले जाए। हमें तो बस हाथ खड़े कर के उनकी इच्छा में समर्पित होना है।
“जोई जोई प्यारो करे सोई मोहि भावे”
अर्थात~
जो मेरे प्रभु को प्रिय है वही मुझे प्रिय है।
ये बात सर्व प्रथम आनी ही चाहिए।
अब प्रभु को क्या प्रिय है?
प्रभु खुद कहते है:~
निर्मल मन जन सो मोहि पावा।”
मोहि कपट छल छिद्र न भावा॥
भेद लेन पठवा दससीसा।
तबहुँ न कछु भय हानि कपीसा।।
अर्थात~ जो मनुष्य निर्मल मन का होता है, वही मुझे पाता है। मुझे कपट और छल-छिद्र नहीं सुहाते। यदि उसे रावण ने भेद लेने को भेजा है, तब भी हे सुग्रीव! अपने को कुछ भी भय या हानि नहीं है।
हमें सरल बन के रहना है जैसे भी हो हमें उनके बने रहना है यदि हम विषयों में आसक्त हैं तो भी उनके है उनसे कोई पर्दा है नहीं इसलिए हमें भी नही रखना चाहिए अपने अवगुण सब उन्हें प्रस्तुत कर देने चाहिए।
जब हम प्रभु की इच्छा में स्वीकृति देंगे तब क्या होगा?
तब यह होगा~
“भावे मोहि जोई सोई सोई करे प्यारे।”
अर्थात: जो मुझे प्रिय है वही मेरे प्रभु करेंगे।
अब कोई कहेगा भक्त की तो इच्छा नहीं होती वह तो कुछ मांगता नहीं फिर ऐसा कैसे होगा जो भक्त चाहेगा वही होगा?
इसका सीधा उत्तर है पहले हमने अपनी इच्छा को हरि में मिला दिया इसका अर्थ है अब हम और हरि एक हो गए है।
अब भक्त और भगवान में भेद नहीं रहा। जो भक्त का मन वही भगवान का मन, जो भगवान का मन वही भक्त का मन।
अब जो भी इच्छाएं होगी वो सभी जगत मंगल के लिए होंगी।
इसलिए हमें हर समय प्रभु के बन के रहना है ताकि मनुष्य जन्म सार्थक हो सके।
🙏🏼 ।।श्री राधा वल्लभ लाल की जय।। 🙏🏼
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