भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह* ….. !!”

“क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव …. ? 
और यदि धर्म का नाश होना ही है, तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है ….. ?”

 *”सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह …. !* 

 *ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता ….. ! केवल मार्ग दर्शन करता है,*
  
*सब मनुष्य को ही स्वयं करना पड़ता है …. !* 

*आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न …. ! तो बताइए न पितामह, मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या ….. ? सब पांडवों को ही करना पड़ा न …. ?* 

*यही प्रकृति का संविधान है …. !”*  

*युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से …. ! यही परम सत्य है ….. !!”*

भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे …. ! 
उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी …. ! 
 उन्होंने कहा – चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है …. कल सम्भवतः चले जाना हो … अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण …. !”

*कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले, पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था* …. !

*जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों, तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है ….।।*

*धर्मों रक्षति रक्षितः* 

*🙏।।जय श्री हरि