This poem is dedicated to all beings out there who are living away from their home.
Read it…. Feel it…
घर से दूर हूं…….
तुम्हारी याद आती है….
सुबह जब अलार्म मुझे उठाता है…
मां मुझे तेरी याद आती है।
खुद ही खुद के लिए नाश्ता बनाता हूं…
तो तेरे हाथ की गर्म चाय याद आती है।
जब खुद ही तैयार होकर चलता हूं…
तेरा आवाज देकर टिफिन देना याद आता है।
थका हारा जब वापिस आता हूं…
तेरा मेरे लिए खाना रखना याद आता है।
भूल जाता हूं मैं कभी कभी…
अब घर में नहीं हूं…
जिंदगी एक अलग दौर से गुज़र रही है।
तेरी खुशी के लिए ही…
आज तुझे दूर हूं।
बीमार हो जाऊं तो….
खुद ही सर दबाने को मजबूर हूं.
हां, मैं अब घर से दूर हूं।
I hope you enjoyed it. Thank you…
POV: I’m missing my home badly… (Mumma, Papa, Dadi, Bade Papa, Badi Maa, Bhai Bhabhi, Chacha Chachi, Chhota Bhai, Dee Jiju, my Bhanji, Hamari pyari gaay, kabutar, Nani Ka ghar, some padosis not all… LoL)
Pic Credits: pixels.com
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