- Jai Shri Radhey Shyam!
I offer my obeisance to the divine Lotus feet of Shri Gurudev.
I hope you all are fine. Let’s pray to divine to give us strength in this time.
Yesterday, I went through the place in my village where my mother and I used to come in evening in my childhood. We used to bring our cattle to that land to feed them.
Life was so beautiful. Yes it’s beautiful everytime. But I’m remembering those days….
So here I’m expressing those memories by framing them in my poem.
।।बचपन की याद आ गई।।
जब उस रास्ते से गुजरा,
तो बचपन की याद आई।
यादों के सैलाब से,
यह दो आंखें मेरी भर आई।
भाई थे साथ में लेकिन फिर भी,
आंसू की बूंदे ना गई छिपाई।
जब यादों के समंदर को देखता हूं,
असंख्य प्रयासों से भी बोध ना होती उसकी गहराई।
डरता हूं कहीं डूब ना जाऊं उतरकर इसमें,
इसलिए मैंने किनारे ही अपनी चटाई बिछाई।
लेकिन फिर भी लहरें कहां मानती हैं,
भिगो ही देती हैं अपनी मनोहर बूंदों से।
बचपन की बातें याद आ रही है,
पांचवी के बोर्ड की परीक्षा याद आ रही है।
मां और मैं चले जाते थे गोचर को,
ले जाता मैं अपनी किताबों को,
और मां साथ ले जाती अपनी गैया को।
खुले आसमान के नीचे,
हरी मुलायम घास के ऊपर,
मैं और मेरी मां बस यही था जीवन।
हमारी गैया तो घास खाती,
और मैं करता परीक्षा की तैयारी।
छोटा था बहुत नौ वर्ष का,
शायद तभी मिलती थी गाय की सवारी।
2 घंटे शाम के ऐसे बीतते थे,
जैसे हम सुकून में ही जीते थे।
आज मैं उसी जगह से गुजरा,
वह जगह मुझे भूली ही नहीं थी।
इंतजार कर रही थी मेरा,
क्योंकि इतने समय से मुझसे मिली नहीं थी।
*गोचर: वह भूमि जहां मवेशी चरते हो।
Thanks for reading.
May divine bless you…
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