बरसात का मौसम था। पूरा परिवार बाहर झरोखे में बैठा था, चाय और गरम पकोड़े सबके हाथों में थे। मैं और मेरी दीदी भी बैठे हैं। यह शाम का समय है, अंधेरा होने लगा है, बारिश भी तेज हो गई है, दूर से कोई आवाज भी दे तो सुनाई ना दे। घर में सब मुझसे जलते हैं क्योंकि मैं सबका लाडला जो हूं, सब का मतलब मेरे बाकी भाई-बहन।
मुझे आवाज आती है, मेरी मां ने मुझे आवाज डाली है, मैंने कहा: जी मां आया।
जैसे मैं जाने लगा, मेरी दीदी भी मेरे साथ चली क्योंकि बाहर अब चर्चा कुछ और ही हो रही थी ,बड़े लोग भी ना। मैं अपने मां के कमरे में जाता हूं लेकिन देखता हूं मां तो यहां है ही नहीं। आवाज डालता हूं, मां नहीं सुनती। सुनती भी कैसे वह तो उस कमरे में ही नहीं थी। ढूंढा तो पाया मां तो पीछे गौशाला में है और गाय को घास डाल रही थी।
पूछा मैंने, हां मां कहिए क्यों बुलाया?
बुलाया? किसने? मां उत्तर देती है।
मैंने कहा आपने ही तो आवाज़ डाली थी।
मैंने कोई आवाज नहीं डाली, मां बोलती है।
मैं और दीदी एक दूसरे को देख रहे हैं कुछ समझ नहीं आ रहा। दीदी और मैंने स्पष्ट सुना था किसी ने मेरा नाम लिया था। हम दोनों फिर से सब के बीच आ बैठे, सब पूछते हैं कहां चले गए थे?हमने का आवाज डाली थी ना किसी ने। लेकिन वह आवाज किसी ने नहीं सुनी। बस मैं और मेरी दीदी हम दो थे जिनको आवाज सुनाई दी थी।
क्या था ये?
Pic Credits: https://twitter.com/henriprestes/status/1231677974711357441
Comments & Discussion
5 COMMENTS
Please login to read members' comments and participate in the discussion.