ऐसा मैंने क्या किया? जो तूने मुझे बीसार दिया ,
तूने कभी ना मुझे अपना प्यार दिया।
मैं तड़पता रहा यूं ही तेरे द्वारों के आगे,
पर तू कभी ना अपनी नींद से जागे ।
क्या बस मूर्तियों में ही मूर्तिमान रहेगा तू ?
या बस मीरा और चैतन्य की ही सुनेगा तू ,
अगर ना हूँ तेरे योग्य मै तो बना दे मुझे ,
क्या अब योग्यता देख कर अपनायेगा तू ?
क्या अब योग्यता देख कर अपनायेगा तू,
या मेरे भाव से ही रीझ जाएगा तू ।
करता रहूंगा अस्तित्व पर तेरे संशय हमेशा,
अगर आया ना तू थामने मुझे महेशा ।
मैं उलझ गया हूं तेरी माया के जाल में,
अब तो ठहरा देना तू वर्तमान में।
हर घड़ी भटक रहा यह मेरा चंचल सा मन,
अब तो करा दे ना तू इससे नित्य सुमिरन ।
रो रो कर सुनाता रहा अपना हाल मै,
पर तू है कि चलता रहा अपनी ही मस्त चाल में ।
क्या बस यूं ही अज्ञात रहेगा तू ?
या कभी मेरी भी सुनेगा तू।।
The pain of not knowing is very painful. It is the pain which compels us towards the Unknown. The words can’t describe it only one can feel it.
For example if you are hungry you can’t describe the hunger in words. So if you don’t know anything and you actually realise it then you put a step towards the Unknown. If you want to fill the vessel you must have to empty it.
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