जय श्री राधे
जय श्री हरि
आप सभी के चरणो में मेरा कोटि कोटि वंदन। आशा करता हूं आप सभी कुशल मंगल होंगे। इस महामारी के समय में आप सभी स्वस्थ रहें और अपने भजन में लगे रहे ऐसी ही दास की श्री ठाकुर जी के चरणों में प्रार्थना है।
आज इस विषय पर लिख रहे हैं हो सकता है किसी को बुरा लगे, हर कोई सहमत नहीं हो सकता इस विषय से। इसलिए पहले क्षमा चाहता हूं। लेकिन मैं जो कह रहा हूं वह केवल और केवल अपने अनुभव से कह रहा हूं। यह मेरा अपना निजी अनुभव है यह किसी व्यक्ति का नहीं और इसलिए यह सभी के लिए एक सा नहीं हो सकता लेकिन हां मेरे लिए जो अनुभव मेरा है वह आपको बताऊंगा बिना किसी भी कल्पना के।
वैसे तो ठाकुर जी श्री हरि कण-कण में विराजमान है, ऐसा कोई स्थान नहीं जहां पर वे विराजमान ना हो। यह भक्तों की भावना है वह कण-कण में विराजमान है, हर एक जीवन में सामान्य रूप से वह विराजमान हैं, वही सब बने हुए हैं। लेकिन इसका बोध कैसे होगा जीव को? जीव तो बड़ा ही अज्ञानी है उसे हर बात का प्रमाण चाहिए। अब भक्त कैसे प्रमाणित करेगा? यह तो असंभव है कि वह कोई प्रमाण दे, वह तो स्वयं में प्रमाण है, वह जीवन जीता ही श्रीहरि के लिए है उसका जीवन ही प्रमाण है, भक्तों का जीवन ही प्रमाण है। जब मैं नहीं था तब भी तो हरि थे, जब मैं हूं तब भी श्रीहरि हैं, जब मैं नहीं रहूंगा तब भी तो वे रहेंगे। कण कण में है लेकिन फिर भी जीव की दुर्गति क्यों होती है? क्यों भटकते हैं? जब वह कण-कण में विराजमान है लेकिन फिर भी मैंने दुख पाए तब भी तो मैं इस माया के जाल में फंसा ही हुआ था ना।
उत्तर सीधा सा है “कण कण में है इसका बहुत किसने कराया? :गुरुदेव ने”
मेरे लिए तो मेरे गुरुदेव ने मुझे बोध कराया। मेरे गुरुदेव थोड़ी देह तक सीमित है, वह तोज्ञान की ज्योति हैं जो मुझे हर पल मार्ग दिखाती हैं। इसलिए मैं बड़ी ठसक से कहता हूं कि भगवान के होते हुए दुर्गति है जीव की लेकिन गुरुदेव के होते हुए कभी दुर्गति नहीं हो सकती।

मुझे बहुत ही प्यारी सी चौपाई बालकांड से स्मरण आ रही है:

हरि व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जाना।
देश काल दिसी बिदिसीहूं माही, कहहुं से कहां जहां प्रभु नाहीं।।

प्रभु तो सर्वत्र समान रूप से विराजमान है और वही प्रभु प्रेम से प्रकट होते हैं। यह प्रेम किसने दिया? यह तो मेरी सामर्थ्य नहीं थी कि मैं उनसे प्रेम कर सकूं. प्रेम मुझे मेरे गुरुदेव ने दिया है। बलिहारी मेरे गुरुदेव की जो आपने इतनी कृपा की और मुझे प्रेम रूपी धन दे दिया।
पायो जी पायो मैंने राम रतन धन पायो। वस्तु अमोलक दी मेरे सतगुरु कृपा कर अपनायो। पायो जी पायो मैंने राम रतन धन पायो।।
प्रभु का नाम गुरुदेव ने दे दिया कृपा कर ले। कृपासिंधु गुरुदेव को कोटि-कोटि धन्यवाद। अनंत जन्म भी ले लूंगा तो भी ऊऋण ना हो पाऊंगा। गुरुदेव आपने मुझे मेरे हरि से मिलने का मार्ग दिखा दिया, आपकी बलिहारी।
इसलिए भगवान के होते हुए दुर्गति हैं लेकिन गुरुदेव के होते हुए दुर्गति नहीं।
राधे राधे
।।जय श्री हरि।।

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