A hindi poem written 35 years ago…..

                 और कब तक….

वाह री नारी….तेरी कथा है न्यारी

‘ कन्या ‘ को जन्म दे कहलाती है तू बेचारी!

बचपन में तुझे गुड़िया से खेलना सिखाया जाता है

घर -घर के खेल में तेरी रूचि को बढ़ाया जाता है

दस साल बीते तो तुझे घर का काम काज बताया जाता है

तू ‘लड़की ‘ है इस बात का एहसास कराया जाता है.

यौवन में तुझे नारीत्व का पाठ पढ़ाया जाता है

‘पराया धन ‘ और दूसरे घर का रटन दोहराया जाता है.

फिर तुझे दुल्हन बनने के स्वप्न से रिझाया जाता है,

और अंततः

दहेज रुपी धक्का मार तेरे बोझ से छुटकारा पाया जाता है

और कब तक खेलेगी ये खेल

और कब तक कहलाएगी तू बोझ

और कब तक खायेगी यह धक्का

ज़रा सोच तो मेरी प्यारी….

हाय री नारी… तेरी व्यथा है न्यारी.

          🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼

I somehow feel that poems die and lose their spirit when translated in other languages.  How will the words rhyme!!!!how can the actual taste of one particular language be tasted in translated version!!!!! Hence am not even trying to translate😄😄😄

Hari bol🌹🌹🌹🌹