कई बार हम अपनी spiritual journey को लेकर आशंकाए करते है, पता नहीं भगवान कब कृपा करेंगे, पता नहीं मेरे efforts सही direction में जा रहे है या नहीं। 

इस सन्दर्भ में एक सच्ची घटना जो एक संत ने अपने discourse में सुनाई नीचे describe कि जा रही है:- 

एक संत का नियम था कि एक वटवृक्ष कि जड़ को सींचते (irrigate) थे (दूध से या पानी से )। 

एक बार उन्होंने announce कर दिया कोई इसकी जड़ को नहीं irrigate करेगा मेरे सिवाय। क्यूँकि अत्यधिक सींचने से वहाँ बहुत गन्दगी हो जाती थी। उसके बाद वहाँ एक board लगा दिया गया , “कृपया वटवृक्ष को ना सींचे “।

एक दिन क्या हुआ वो अपने पूजा पाठ में इतना मगन हो गए कि गए हि नहीं सींचने। अचानक रात को उनकी आँख खुली। उनको ऐसा लगा कोई उनको बोल रहा है ” तूने वटवृक्ष को सींचा नहीं और बाकी लोगों का भी मना करवा दिया। अब वहाँ के कीड़े भूख से कुलबुला रहे है। जा उसको  सींच कर आ ! “

वो चुपचाप उठे और उसको सींच कर आ गए। 

सारांश:- उस परमात्मा को उन वटवृक्ष के कीडो कि भी चिंता है, जो कीड़े दिखते भी नहीं है, जो बोल कर बता नहीं सकते ! ऐसे परमात्मा को छोड़कर कहीं और जाने का मन कर सकता है क्या? वो तो सिर्फ उस वटवृक्ष कि बात है , ऐसे कितने अनगिनत पेड़, पौधे, कीड़े, जानवर, जीव, पशु, पक्षी, आदि infinite species है, वो उन सबका देखभाल करता है। और हम अपनी संकीर्ण सोच के साथ बस रह जाते है, मेरा ये अमुक काम हुआ नहीं, ये कब होगा, etc. etc..

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