Jai Sri Hari 🌼

उद्विग्न मन में उठती भाव तरंगों को।
शांत कर दो उठते इन सब वेगों को।।

मधुर औषध दे अपने दर्शन की।
तुम हर लो सारे भव रोगों को।।

अपनी एक दृष्टि कर के यहां भी।
कर दो नूतन मेरे इन बागों को।।

खिल जाए हर भाव के फूल यहां पे।
बरसा दो प्रेम की ऐसी बरसातों को।।

अनुपम रूप माधुरी का रस चखा कर।
कर तो नष्ट व्याकुल मन के शोकों को।।

अपने दिव्य प्रेम की सरिता बहा के।
हरा भरा करो दो हर सूखे मन के कोनों को।।

तुम्हारे मुख चंद्र की छवि देख के।
कभी चैन ना आए अतृप्त नैनों को।।

तुम्हारी मधुर रसमयी वाणी सुन कर।
कभी चैन ना आए अतृप्त करणों को।।

तुम्हारे धाम में आता रहूं मैं जीवन भर।
जहां मिले शांति हर पीड़ित जीवों को।।

हम शिशु आपकी शरण में आए।
तुम अपनाओ या ना अपनाओ हम बच्चों को।।

लेकिन तुम्हारी ममता तुम्हे विवश कर देगी।
अपनाने को हम सब भूले भटके बच्चों को।।

Swami… Swami… Swami…