नित्यपुर, सतपुड़ा के विशाल पहाड़ों की तलहटी में बस हुआ एक पुरातन राज्य। इसे अपने आँचल में लिए, इंद्र गंगा बड़े ही प्रेम से सींचती थीं (यह नर्मदा मैया की एक शाखा है, जो अब विलुप्त हो चुकी है) कहते है इसके जल में जीवन दायनी शक्ति थी। जैसे ही राज्य के अप्रतिम सिंह द्वार से आप गुज़रेंगे, पाएँगे कि असीम शांति और प्रेम की अविरल धारा बह रही है।
हमारी यह कहानी, या यूँ कहिए, कहानियों की शृंखला का उद्गम स्थान, राजधानी पितंबरा है। यहाँ के महाराज रविनाथ अपने न्यायप्रियता के लिए सर्वत्र चर्चित थे। कहते है ना, अगर राजा का चरित्र उत्तम हो, तो राज्य समृद्ध, प्रजा प्रसन्न और संतुष्ट रहती है। बस यही बात शत प्रतिशत नित्यपुर पर लागू होती है। कहा जाता है, यह वैभव और प्रताप, राजा रविनाथ की अनन्य भक्ति का परिणाम था, माँ अंजला के प्रति उनका समर्पण अप्रतिम था।
उनकी राज्यसभा, गुणीजनो और विद्या रत्नों से शोभायमान रहती थी। कहा तो यह भी जाता था, कि इंद्र देव भी स्वयं छद्म वेश में कई मरतबा उस सभा के दर्शन करके गए थे। रविनाथ हमेशा ही प्रसन्न और सौम्य चित्त रहते, अपनी स्वयं की कोई संतान ना होने का उन्हें कोई क्षोभ नहीं था। उनकी उत्कट अभिलाषा थी की माँ अंजला के दर्शन हो जाएँ, और जीवन में सतत ही उनकी दिव्य उपस्तिथि बनी रहे।
एक दिन की बात है, उनसे एक साधू भेंट करने आए, जिनकी श्वेत दाढ़ी, केश और मुख से निखरित होती आभा साफ़ संकेत दे रही थी कि वह एक सिद्ध हैं। राजा तुरंत सिंहासन से उतरे और ऋषि की अभ्यर्चना कर उन्हें सिंहासन पर विराजित किया।
राजा: बतायिए ऋषिवर मैं आपकी सेवा में क्या प्रस्तुत कर सकता हूँ?
ऋषि: राजन, मैं यहाँ एक विशेष प्रयोजन से आया हूँ, दिव्य आदेशानुसार यह बिल्व फल तुम्हें सौंपता हूँ। इसे आज रात्रि सोमरस में मिला कर पी जाना और ध्यान रहें, यह काम तुम्हें स्वयं करना है। यह कह कर ऋषि वहाँ से चल दिए।
अगली मध्यरात्रि, माँ अंजला ने महाराज को स्वप्न में दर्शन दिए, वह दिव्य श्याम स्वरूप लिए इंद्र गंगा से प्रकट हुई, उनके खुले घुंघराले केश बड़ी ही शोभा पाते थे, देवी का अप्रतिम वात्सल्य स्वरूप रविनाथ को एक दूसरे ही लोक के दर्शन करा रहा था। उनके मुख से प्रवाहित होते शब्द राजा की आत्मा से संवाद कर रहे थे।
“राजन, कल सुबह आपके प्रांगण में, मेरे एक अत्यंत प्रिय सेवक का आगमन होगा, उसका ध्यान अपने पुत्र की तरह रखना,”
इतना कह कर माँ अंतरध्यान हो गयीं, कुछ क्षण के लिए तो उन्हें सुध-बुध ही ना रही। जब होश आया तो वह अपने भाग्य को सराहते ना थकते, अब उन्हें बेसब्री से पुत्र के आने की प्रतीक्षा थी।
सूर्य नारायण लालिमा बिखेरते हुए, नभ की शिखा की ओर बढ़ते गए और राजा की उत्कठता को विस्तार देते गए। उन्होंने अपने सेवकों को आदेश दिया की जैसे ही कोई शिशु को लेकर आये तो सीधे उनके पास लाया जाए। उनकी पटरानी सुमति भी अत्यंत उत्सुक और प्रसन्न थी।
जैसे-जैसे प्रातः काल अपने प्रचंड स्वरूप को ग्रहण करता गया, उसी अनुपात में राजा के मुख का तेज़ अस्त होता गया। कोई समाचार ना आने से उनकी दयनीय अवस्था देख कर महामंत्री सृहद चिंताग्रस्त होने लगे। राजा के लिए मानना असम्भव था कि वह सिर्फ़ स्वप्न था और माँ के दर्शन असत्य हो सकतें है। एक भक्त का हृदय ऐसा ही होता है, उसके जीवन की डोर सर्वदा इष्ट के हाथों में होती है, वह स्वयं से ज़्यादा आराध्य पर विश्वास करता है, इसके इलावा और कुछ मायने नहीं रखता।
महामंत्री सृहद ने तुरंत राजा के निजी रक्षा प्रमुख को तलब किया, और उन्हें महल के आस-पास हुई किसी भी दुर्लभ घटना के बारे में जानकारी लाने को कहा, और साथ ही साथ सिंहद्वार पर सारे आवाजाही करने वाले व्यक्तियों की पूछ ताछ का आदेश दिया। जल्द ही पितंबरा में यह ख़बर आग की तरह फैल गयी।
दोपहर से शाम होने आ रही थी, और रविनाथ बस अपने निजी कक्ष में ही थे। आज अनेक वर्षों में पहली बार राजसभा स्तगित कर दी गयी थी।
तभी!
संध्या की बेला में राजमहल के प्रमुख द्वार पर एक नवयुवक दो बैलों के साथ आया, और बोला मुझे राजा से मिलना है। उसकी दयनीय अवस्था, और चीथडों से ढके हुए शरीर को देख कर रक्षकों ने वहाँ से भागा दिया।
“जाने कहा से आ जातें है, यह हमारे राजा से मिलेगा। अपना चेहरा आईने में शायद ही कभी देखा होगा तूने। भाग यहाँ से!!”
युवक चला गया, पर दोनों बैलों को वही छोड़ गया। अब रक्षकों के लिए एक नयी मुसीबत खड़ी हो गयी, कितना भी भगाने पर बैल वहाँ से टस से मस ना हों, और कुछ ही घड़ियों में दोनों बैल, काले पत्थर की मूर्ति में बदल गए।
तभी, उनमे से एक द्वारपाल को महामंत्री का आदेश स्मरण हो आया, और उसने तुरंत जा कर उन्हें ख़बर करी। सब कुछ सुनते ही महामंत्री सृहद के कान खड़े हो गए, क्योंकि अंजला माँ का वाहन कृष्ण बैल हैं!
अरे यह क्या किया मूर्खों? जाने किस घड़ी में तुम्हें द्वारपाल नियुक्त किया था मैंने? तुम्हारे पिता की प्रार्थना सुननी ही नहीं चाहिए थी।
अब खड़े-खड़े मुँह क्या ताक रहे हो? जल्दी बताओ वह युवक किस दिशा में गया।
वे भी अकेले उसी तरफ़ हो लिए, कल को हुई बारिश से सींची भूमि में एक आदमी के पैरों के निशान साफ़ नज़र आ रहे थे, और वह अनुसरण करते गए। अंत में पहाड़ी की चोटी पर पहुँच कर, पद चिह्न समाप्त हो गए। वहाँ से पहाड़ों की विशाल ऋंखला और गहरी नदी साफ़ नज़र आती थी।
अब कहा जाऊँ? यह क्या हो गया?
सृहद वही पहाड़ पर शोकग्रस्त हो कर बैठ जाते हैं, अब मेरे राजन का क्या होगा? क्या उन द्वारपालों के कर्मों की सज़ा हमें मिलेगी? यह कैसी माया है तुम्हारी माँ अंजला, एक तरफ़ तो हमारे भक्त शिरोमणि राजा को दर्शन दिए, और दूसरी ओर दो मनुष्यों के वाक्यों के कारण वरद हस्त वापस कर लिया।
कृपा करों माँ! मैं अपने स्वामी को ऐसे नहीं देख सकता, कुछ तो रास्ता होगा? अपने कर्मचारियों के व्यवहार के लिए मैं ज़िम्मेदार हूँ, अगर अपनी कृपा से वंचित रखना है तो मुझे रखो, हमारे प्रिय महाराज को बस उनकी आशानुरूप फल प्रदान करो।
और ऐसे तो मैं क़तई उनके सामने नहीं जा सकता, अगर मुझे रास्ता नहीं दिखाया, तो मैं अभी इंद्र गंगा की गहरायी में स्वयं को समर्पित कर दूँगा।
बस वह पहाड़ी की चोटी के किनारे खड़े हो, व्याकुल हो ही रहे थे, की अचानक ही ख़ुद को पहाड़ी से नीचे गिरता हुआ पातें हैं।
पृष्ठभूमि में एक नक़ाबपोश त्रिशूल लिए, पहाड़ी की चोटी से नीचे झाँक कर बड़बड़ाते हुए, भगवती यह सब भी अभी ही होना था। मेरी भी विवशता है, यह कैसे कुचक्र में फँस गया हुँ? और कितने दुष्कर्म यह नंदीपाल मुझसे करवाएँगे? स्वयं और परिवार की रक्षा के लिए व्यक्ति को क्या नहीं करना पड़ता! और अगर यह ना करता तो निश्चित रूप से वह मुझे मार देते, आत्मरक्षा तो सर्वोपरी है।
जाने किस क्षण उस दुष्ट को मैंने अपनी आत्मा बेच दी।
वह नक़ाबपोश वापस जंगल की ओर चल देता है और कहता जाता है।
देवी माँ रक्षा करे…
अरे! कहा चल दिए?
अभी जायियेगा नहीं! आपने इतना समय दिया है तो कुछ प्रश्न साँझा करना चाहूँगा। इस कड़ी से तो वैसे हम काफ़ी कुछ हम ग्रहण कर सकतें हैं, पर यह प्रश्न सहज ही मन में आते हैं:
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क्या उन प्रहरियों ने युवक के साथ उचित व्यवहार किया? किसी मनुष्य का मूल्य सिर्फ़ उसका बाहरी परिवेश ही तय करता है या कुछ और?
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कैसे व्यक्ति को अपनी सेवा में रखना चाहिए और उसे कौन से ग़ुणो का धनी होना चाहिए?
इसी के साथ विदा लेता हूँ, आपसे मुलाक़ात होती है अगली कड़ी में…
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